जम्मू-कश्मीर को 5 अगस्त को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने की घोषणा से पहले ही नजरबंद किए गए राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ हो रहे व्यवहार से घाटी के लोग नज़र आ रहे हैं खुश। उनका कहना है कि चाहे जितने भी कठोर कदम सरकार द्वारा उनके खिलाफ उठाए जाऐं वो बहुत कम हैं। आज जो उन पर बीत रही है वो उनके द्वारा ही तैयार नीतियों का नतीजा है। यह सब बातें सियासी नेताओं के साथ पुलिस कार्रवाइयों के बाद जनता के मुंह से सामने आ रही हैं।
श्रीनगर में एक स्थानीय नागरिक अब्बास वानी ने बताया कि सरकार ने जो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के नेताओं को जो नजरबंद रखा है वो एक सोची समझी रणनीति के तहत है। सरकार उनपर शिकंजा कसे हुए है जिनके ऊपर दाग लगे हुए हैं। ये नेता सिर्फ अपने फायदे में लगे रहे घाटी के लोगों की आवाज को आगे नहीं ले गए। कश्मीर में चाहे बेरोजगारी हो या फिर विकास सब इनके कारण प्रभावित हुआ है। इसलिए इनके खिलाफ जितने कठोर कदम भी उठाए जाएं वो कम हैं।
वहीं एक अन्य नागरिक समीर अहमद ने बताया कि इन नेताओं ने जैसा बोया है आज उनके साथ वैसा हो रहा है। उन्होंने कहा कि इन लोगों को जनता से कोई लेन देन नहीं है उन्हे केवल अपनी कुर्सी से प्यार है। प्रदेश में किसी की भी हकूमत रही हो उन्होने लोगों के साथ कोई वफा नहीं की है। उमर की हकूमत में वर्ष 2010 में भी कश्मीर में स्थानीय लोगों की जानें गई और महबूबा ने अपनी हकूमत के दौरान भी लोगों के साथ कोई वफा नहीं की। उन्होंने पीडीपी को घाटी के हालातों के लिए ज़्यादा जिम्मेदार ठहराया।